Sale!

Vaidic Sandhya

150

इस पुस्तक में संध्या के मन्त्रों का तीन प्रकार का भाष्य (आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक) पाठकों को पढने को मिलेगा। वैदिक रश्मि सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म कणों से लेकर विशाल तारों तक) वेद मन्त्रों की ऋचाओं से निर्मित है और यही मत हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों का रहा है। ये मन्त्र वाणी की पश्यन्ती अवस्था में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विद्यमान हैं। सम्पूर्ण बह्माण्ड में वेदमन्त्र गुँजायमान हो रहे हैं और इस प्रकार संस्कृत ब्रह्माण्ड की भाषा है। जब हम वेद मन्त्रों का उच्चारण करते हैं, तो इनका प्रभाव सृष्टि पर पड़ता है, भले ही हम उसे अनुभव न कर सकें।

Add to Wishlist
Add to Wishlist
SKU: TVSP01 Category:

Description

परमपिता परमात्मा ने इस सृष्टि को रचा, वही इसे नियन्त्रित वा संचालित कर रहा है और एक समय बाद इसका प्रलय भी कर देगा। उसने सृष्टि की रचना जीवात्मा के लिये की है, इसमें ईश्वर का अपना कोई स्वार्थ नहीं है। सम्पूर्ण प्राणिजगत् में हम मानवों को ही सबसे अधिक बुद्धि और जटिल शरीर प्रदान किया है । हम अपने शरीर पर दृष्टिपात करें, तो हम पाते हैं कि हमारा एक-एक अङ्ग कितना मूल्यवान् है । इतना सब कुछ मिलने के बाद भी क्या हमारा कर्त्तव्य नहीं कि हम उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करें?

अपनी कृतज्ञता को व्यक्त करने के लिए संसार में विभिन्न सम्प्रदायों ने अपनी भिन्न- भिन्न पूजा-पद्धतियाँ बना ली हैं। क्या आपने कभी विचार किया है कि जब इनमें से कोई भी सम्प्रदाय इस धरती पर नहीं था, तब कौनसी पूजा पद्धति इस संसार में प्रचलित थी? आर्ष ग्रन्थों का अध्ययन करें, तो उन सबमें संध्या को ही ईश्वर की पूजा अर्थात् स्तुति, प्रार्थना और उपासना का मार्ग बताया है। जब से मानव जन्मा, तभी से वह इस पद्धति को अपनाये हुए था, महाभारत के पश्चात् यह परम्परा शनै: -2 समाप्त होने लगी। ऋषि दयानन्द ने पुनः हमें उस परम्परा से अवगत कराया और तब से आर्य (श्रेष्ठ) लोग संध्योपासना करने लगे।

संध्या क्या है?
संध्या शब्द ‘ सम्’ उपसर्गपूर्वक ‘ ध्यै चिन्तायाम्’ धातु से निष्पन्न होने से इसका अर्थ है- सम्यक् रूप से चिन्तन, मनन, ध्यान, विचार करना आदि। संध्या को परिभाषित करते हुए ऋषि दयानन्द पञ्चमहायज्ञ-विधि में लिखते हैं-

सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यम सा सन्ध्या

अर्थात् जिसमें परब्रह्म परमात्मा का अच्छी प्रकार से ध्यान किया जाता है, उसे संध्या कहते हैं। इसमें ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना और उपासना की जाती है। उधर भगवान् मनु संध्योपासना के विषय में मनुस्मृति में लिखते हैं-

पूर्वां संध्यां जपंस्तिष्ठन्नैशमेनो व्यपोहति ।
पश्चिमां तु समासीनो मलं हन्ति दिवाकृतम्।॥ (मनु. 2.102)

अर्थात् दोनों समय संध्या करने से पूर्ववेला में आये दोषों पर चिन्तन-मनन और पश्चात्ताप करके उन्हें आगे न करने के लिए संकल्प किया जाता है।

संध्या का फल
सनातन वैदिक धर्म में परमपिता परमात्मा की पूजा वा संध्या का अभिप्राय स्तुति, प्रार्थना और उपासना से ही है। ऋषि दयानन्द सरस्वती के अनुसार-

स्तुति से ईश्वर में प्रीति, उसके गुण, कर्म, स्वभाव से अपने गुण, कर्म, स्वभाव का सुधारना, प्रार्थना से निरभिमानता, उत्साह और सहाय का मिलना, उपासना से परब्रह्म से मेल और उसका साक्षात्कार होना।

पूज्य आचार्यश्री द्वारा प्रतिपादित वैदिक रश्मि सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (सूक्ष्म कणों से लेकर विशाल तारों तक) वेद मन्त्रों की ऋचाओं से निर्मित है और यही मत हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों का रहा है। ये मन्त्र वाणी की पश्यन्ती अवस्था में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विद्यमान हैं। सम्पूर्ण बह्माण्ड में वेदमन्त्र गुँजायमान हो रहे हैं और इस प्रकार संस्कृत ब्रह्माण्ड की भाषा है। जब हम वेद मन्त्रों का उच्चारण करते हैं, तो इनका प्रभाव सृष्टि पर पड़ता है, भले ही हम उसे अनुभव न कर सकें।

जो प्रतिदिन संध्या करते हैं, प्रायः उनको संध्या के मन्त्रों का सामान्य अर्थ भी ज्ञात नहीं होता, जिससे उनका मन संध्या में ठीक प्रकार से नहीं लग पाता। इसको ध्यान में रखते हुए इस पुस्तक में संध्या के मन्त्रों का तीन प्रकार का भाष्य (आधिदैविक, आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक) पाठकों को पढने को मिलेगा। ऐसा कार्य संसार में पहली बार हुआ है।

Additional information

Weight 0.150 g
Dimensions 15 × 22 × 2 cm

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Vaidic Sandhya”