Mansahar

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Dharm, Arth or Vigyan ke Alok me

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Description

संसार के समस्त प्रबुद्ध बंधुओ व बहनो! जरा विचारें कि सृष्टि के रचयिता परमपिता परमात्मा ने इस संसार में फल, दूध, शाक, अन्न, मेवे, घृत आदि सुन्दर, सरस व स्वास्थ्यवर्धक पदार्थ खाने के लिए दिए हैं। तब क्यों हम निर्दाेष निरीह जीवों के प्राणहरण का भयंकर कष्ट देकर मांस- मछली तथा भ्रूणरूप अंडे जैसे गंदे अभक्ष्य पदार्थों का सेवन करते हैं? क्या हम नहीं जानते कि इस पापपूर्ण आहार के कारण न केवल अनेक रोगों का जन्म होता है, अपितु पर्यावरण का संकट उत्पन्न होकर भूकंप, तूफान, चक्रवात, सूखा, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोपों में भी भारी वृद्धि होती है। हिंसा, क्रोध, शोक व पीड़ा की तरंगें इस ब्रह्माण्ड को असंतुलित करके संसार में नाना अपराधों को भी जन्म देती हैं। आइए! धरती के सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहाने वाले मानव! उठो, जागो, विचारो और अपनी बुद्धिमत्ता का वास्तव में परिचय देकर शुद्ध शाकाहार अपनाओ और इस पृथ्वी को विनाश से बचाओ। उठो, निर्दाेष-निरीह प्राणी आपसे अपने प्राणों की भिक्षा मांग रहे हैं। उनके लिए अपने हृदय में दया, करुणा और प्रेम को जगाओ।

  • Author  :  Acharya Agnivrat Naishthik
  • Edition  :  2nd
  • Publisher ‏ : ‎ Shri Vaidic Swasti Pantha Nyas
  • Binding  :  Paperback
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 64 pages
  • Item Weight ‏ : ‎ 100 g
  • Country of Origin ‏ : ‎ India

Additional information

Weight 150 g
Dimensions 21 × 14 × 1 cm

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