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Ishwar Ka Pratham Updesh Yahi Kyo

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एक वेद मन्त्र की कितनी विस्तृत व्याख्या हो सकती है, पाठक इस पुस्तक में देख सकते हैं। यद्यपि यह व्याख्या भी संक्षिप्त ही है, क्योंकि वेदों में अन्त ज्ञान है। इसीलिए देवराज इन्द्र ने कहा है- अनन्ता वै वेदा:। इस पुस्तक में आपको एक ही वेदमन्त्र के तीन प्रकार के भाष्य (आधिदैविक आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक) पढ़ने को मिलेंगे। वेदभाष्य की जो शैली लुप्तप्राय हो गई थी, उसको आचार्य श्री ने पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। इस पुस्तक में ‘अग्निमीळे पुरोहितं.. मन्त्र का त्रिविध भाष्य किया गया है। विभिन्न सम्प्रदायों के ग्रन्थों के प्रथम-प्रथम वाक्यों की निष्पक्ष दृष्टि से समीक्षा करने के उपरान्त वेद के बारे में विदेशी विचारकों के मत भी उद्धृत किये हैं। इसके पश्चात् इस मन्त्र की विस्तृत व्याख्या की गयी है। पुस्तक के अन्त में प्रबुद्ध श्रोताओं की अनेक शंकाओं का समाधान किया गया है।

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Description

संसार के अनेक सम्प्रदाय अपने-अपने ग्रन्थों को ईश्वरीय वाणी बताकर मानवमात्र को उनके अनुसार चलाने का यथासम्भव प्रयत्न करते हैं। वास्तव में मानव का धर्मग्रन्थ वही हो सकता है, जिसमें सम्पूर्ण सृष्टि का ज्ञान-विज्ञान हो, जिससे मनुष्य सहित सभी प्राणी सुखपूर्वक रह सकें और जिसके अतिरिक्त किसी और ज्ञान की आवश्यकता न रहे। ऐसा ज्ञान वही दे सकता है, जिसने हम सबको बनाया है, इस सृष्टि की रचना की है और जो इसका संचालक व प्रलयकर्त्ता भी है। क्या वेद के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रन्थ इस कसौटी पर खरा उतरता है? नहीं।

वेद क्या है? वैदिक रश्मि सिद्धान्त के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (सुक्ष्म कणों से लेकर विशाल तारों तक) वेद मन्त्रों की ऋचाओं से निर्मित है और यही मत हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों का रहा है। ये मन्त्र वाणी की पश्यन्ती अवस्था में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में विद्यमान हैं। जब मानव सृष्टि का प्रारम्भ होता है, तब चार ऋषि (अग्नि, वायु, आदित्य व अङ्गिरा) इन तरंगों को ब्रह्माण्ड से सीधे अपने मन में ग्रहण करते हैं। इसमें परमपिता परमात्मा की प्रेरणा अनिवार्य रूप से रहती है या ऐसे कहें कि परमात्मा इन चार ऋषियों के द्वारा मनुष्य को ज्ञान प्रदान करता है। इस क्रम में सर्वप्रथम जो ज्ञान तरंगरूप में अग्नि ऋषि को प्राप्त हुआ, वह है-

ओम् अगिनिमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्।
होतारं रत्नधातमम्॥ ( ऋवेद 1.1.11)

यह मन्त्र सम्पूर्ण वेद अर्थात् सृष्टि विज्ञान, लोकव्यवहार और अध्यात्म विज्ञान की भूमिका है। इसमें ईश्वर ने प्रथम पीढ़ी के मनुष्यों के लिए उपदेश किया है कि सर्वप्रथम उन्हें क्या करना है, कैसा राजा या गुरु बनाना है और स्वयं को जानना आवश्यक क्यों है?

एक वेद मन्त्र की कितनी विस्तृत व्याख्या हो सकती है, पाठक इस पुस्तक में देख सकते हैं। यद्यपि यह व्याख्या भी संक्षिप्त ही है, क्योंकि वेदों में अन्त ज्ञान है। इसीलिए देवराज इन्द्र ने कहा है- अनन्ता वै वेदा:। इस पुस्तक में आपको एक ही वेदमन्त्र के तीन प्रकार के भाष्य (आधिदैविक आधिभौतिक एवं आध्यात्मिक) पढ़ने को मिलेंगे। वेदभाष्य की जो शैली लुप्तप्राय हो गई थी, उसको आचार्य श्री ने पुनर्जीवित करने का प्रयास किया। इस पुस्तक में ‘अग्निमीळे पुरोहितं.. मन्त्र का त्रिविध भाष्य किया गया है। विभिन्न सम्प्रदायों के ग्रन्थों के प्रथम-प्रथम वाक्यों की निष्पक्ष दृष्टि से समीक्षा करने के उपरान्त वेद के बारे में विदेशी विचारकों के मत भी उद्धृत किये हैं। इसके पश्चात् इस मन्त्र की विस्तृत व्याख्या की गयी है। पुस्तक के अन्त में प्रबुद्ध श्रोताओं की अनेक शंकाओं का समाधान किया गया है।

Additional information

Weight 180 g
Dimensions 15 × 22 × 2 cm

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